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जिंदगी जिसका कुछ भरोसा नहीं, आज है तो क्या पता कल नहीं // hindi poem by Rana Bharti


"जिंदगी जिसका कुछ भरोसा नहीं,
आज है तो क्या पता कल नहीं" 


👉"कविता का भावार्थ" 
इस कविता में आज की वर्तमान स्थिति को व्यक्त किया गया है कि किस तरह से लोग अपनी जिंदगी की अहमियत भूल कर पैसे के पीछे भाग रहे हैं। लोग ये समझ ही नहीं रहे कि वह किस तरह जिंदगी के असली सुख से वंचित होते जा रहे हैं अपनी जिंदगी की हर खुशियों को पैसों के साथ तोल रहे है और इस रचना के अंत में खुद को कुछ क्षण भर के लिए ठहरने को कहा गया है जिसका भावार्थ ये है लोग अपनी अनमोल जिंदगी के असली महत्व को समझ सके।


 "जिंदगी जिसका कुछ भरोसा नहीं 
आज है तो क्या पता कल नहीं, 
फिर भी यह दुनिया इससे बेखबर क्यों
अपना मेरा पैसा पैसा बस
इंसानियत तो कहीं रही ही नहीं।

आज इंसान खो गया है दुनिया की इस भागदौड़ में 
जहां खुद को समझने का वक्त नहीं,
अंदर से बिल्कुल खोखला और अकेला है 
जिसका जिम्मेदार वह खुद है कोई और नहीं।

सबको लगता है उसके पास पैसा है तो सब कुछ है,
फिर वह अकेलापन क्यों
वे मायुसियत क्यों,
जो वह चाहता है क्यों वह सुकून नहीं,
यह कभी सोचा है 
या फिर यह कहूं सोचने का वक्त ही नहीं,
  तभी तो कह रही 
जिंदगी का कुछ भरोसा नहीं 
आज है तो क्या पता कल नहीं।

इसलिए ठहरो, खुद को समझो
तुम क्या चाहते हो थोड़ा ध्यान वहां भी दो
थोड़ा सा रुको और बो वक्त खुद को दो
दुनिया की भीड़ से अलग होकर 
कुछ समय बस प्यार और शांति से जियो,
क्योंकि व्यस्त रहते बस खुद को भूल जाएंगे और जिंदगी जीने का मजा आएगा नहीं,
यह भागदौड़ ,यह लालसा, सुकून देगी नहीं
जिंदगी ना रहने के बाद साथ कुछ जाएगा नहीं
और यह जिंदगी  दोबारा मिलेगी नही।

यह तो सच है कि जिंदगी का कुछ भरोसा नहीं
आज है तो क्या पता कल नहीं"।




कवयित्री– राणा भारती 

👉अपना बहुमूल्य समय देने के लिए धन्यवाद 🙏

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