सहारा
कविता का भावार्थ — इस कविता मे कवि जीवन के अकेलेपन को दर्शाने का प्रयास कर रहा है ।
कुछ अनकही सी पहेली मेरे कानो मे बहने लगी,
ऐसा लगता हो जैसे कोई चिडी़या कानो में कहने लगी।
अब जो अन्धेरा बुरा लगता था पूरी रात यहां रहने लगी,
और आखें भी मेरी उस अन्धेरे को दिल से सहने लगी।
अब तो काला अन्धेरा ही जैसे मेरे लिए मोत्ती है..
अब तो काला अन्धेरा ही जैसे मेरे लिए मोती है।
साहब अकेले लोगों के लिए तो रात ही सहारा होती है..
अकेले लोगों के लिए तो रात ही सहारा होती है।
कभी गाने सुन लिया करता हूँ, कभी देख लिया किसी चित्र को,
कहीं किसी दौर में इकठे थे याद करता हूँ उस मित्र को,
इन्सान झूठ तो बोल लेता है पर बचा नहीं पाता चरित्र को,
इसलिए शरीर में नहीं लगा पाता में ईस दुनिया के झुठे ईत्र को।
अब तो अकेला रहना अच्छा लगता है बात खुद से ही होती है..
अब तो अकेला रहना अच्छा लगता है बात खुद से ही होती है।
साहब अकेले लोगों के लिए तो रात ही सहारा होती है..
अकेले लोगों के लिए तो रात ही सहारा होती है।
कवि —नवल कान्त
👉अपना बहुमूल्य समय देने के लिए धन्यवाद 🙏


13 टिप्पणियाँ
Nyc poem bhai saab
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंNice poem
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएंबहुपद सराहनीय ��
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएंबहुत खूब मित्र।
जवाब देंहटाएंMujhe nahi pta tha aap itne ache kavi honge well-done brother and keep rising
जवाब देंहटाएंप्रोत्साहन के लिए धन्यवाद
हटाएंBhut badhiya 😊
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएं👌👌👌👌👌👌🥰🤘🤘🤘🤘✌️
जवाब देंहटाएं🙏🙏
हटाएंThanks for coming in my blog, if you have any inquiry please contact with me